(Chapter-2) प्रभुसत्ता


                            (Chapter-2) प्रभुसत्ता

प्रश्न-:(1) प्रभु सत्ता क्या है? कानूनी प्रभु सत्ता के सिद्धांत को स्पष्ट करो। 
                                या 
 प्रभुसत्ता के संबंध में जॉन ऑस्टिन के विचारों को स्पष्ट कीजिए।

उत्तर:- परिचय-: प्रभुसत्ता राज्य का एक अनिवार्य तत्व है अर्थात पर्व सत्ता के बिना राज्य का निर्माण नहीं हो सकता इस संबंध में कोई मतभेद नहीं है।
     समाज में व्यक्ति अपनी आवश्यकताओं के लिए अनेक संगठनों का निर्माण करता है। जैसे आर्थिक आवश्यकताओं के लिए आर्थिक। संगठन बनाए जाते हैं। और धार्मिक संस्थाओं के लिए धार्मिक संगठन बनाया जाता है उसी प्रकार राजनीतिक आवश्यकता के लिए राजनीतिक संगठन बनाए जाते हैं। जिससे राज्य कहते हैं इस प्रकार समाज में अनेक संगठन होते हैं और राज्य भी एक सामाजिक संगठन है। लेकिन राज्य अन्य सभी संगठनों से ऊंचा या श्रेष्ठ है। क्योंकि राज्य के पास प्रभुसत्ता होती है। अन्य किसी संगठन के पास प्रभुसत्ता नहीं होती है।
     समाज में स्थित सभी समुदाय संगठन राज्य की आज्ञा का पालन करने के लिए होते हैं। लेकिन राज्य के सामुदायिक संगठन की आज्ञा मानने के लिए बाध्य नहीं होते हैं इसे ही कहते हैं।
प्रभुसत्ता शब्द का अर्थ-: राज्य की सर्वोच्च शक्ति को प्रभुसत्ता कहते हैं। अंग्रेजी भाषा में sovereignty कहते हैं।  जो supervisor से बनी है। जिसका अर्थ है सर्वोच्च शक्ति इस प्रकार राज्य की शक्ति को प्रभुसत्ता कहते हैं।

*परिभाषा:- (1) बोंदा  के अनुसार :-नागरिक और व्यक्ति व्यक्तियों के ऊपर ऐसी शक्ति जिस पर कानून का कोई बंधन नहीं होता है। सर्वोच्च शक्ति के ल।
(2)ब्लैक स्टोन के अनुसार :-प्रभुसत्ता वह  सर्वोच्च शक्ति है। जिसमें सर्वोच्च कानून कानूनी शक्ति निवास करती है।

#प्रभुसत्ता के दो पक्ष
(A) आंतरिक पक्ष-: एक निश्चित भूमि पर प्रभुसत्ता सर्वोच्च शक्ति है जिसके आदेशों का पालन करने के लिए उस भूमि पर रहने वाले सभी लोग बाध्य होते हैं और प्रभुसत्ता उस निश्चित भूमि पर सर्वोच्च होती है।
(B) बाहरी पक्ष-:  प्रभुसत्ता किसी अन्य राज्य के आदेशों का पालन करने के लिए बाध्य नहीं है। जिसे 15 अगस्त 1947 को ब्रिटेन से  पूर्ण सत्ता प्राप्त हुई।

#जॉन ऑस्टिन के विचार:- कानूनी प्रभुसत्ता के संबंध में जॉन ऑस्टिन से Bonda और Hobs उसनेेेे विचार प्रस्तुत किए। लेकिन जॉन ऑस्टिन ने कानूनी प्रभुसत्ता  की सबसे स्पष्ट व्याख्या की।
         जॉन ऑस्टिन के अनुसार जब कोई निश्चित श्रेष्ठ व्यक्ति जो किसी अन्य श्रेष्ठ व्यक्ति की आज्ञा का पालन करने के लिए बाध्य नहीं है और समाज के बहुत बड़े भाग से वह अपने आज्ञा का पालन आसानी से करवा लेता है तो वह व्यक्ति उस समाज का प्रभु सत्ताधारी है।
# ऑस्टिन के अनुसार प्रभुसत्ता की विशेषताएं:- 
(1)निश्चित और स्पष्ट:- ऑस्टिन के अनुसार प्रभुसत्ता सदैव निश्चित और स्पष्ट होती है। प्रभुसत्ता किसे प्राप्त है? इसमें कुछ सन्देह नहीं है तो प्रभुसत्ता एक निश्चित व्यक्ति को स्पष्ट रूप से प्राप्त होती है। ऐसे व्यक्ति को स्पष्ट रूप से पहचाना जा सकता है।
(2)विशिष्ट मानव-:प्रभुसत्ता जिसे प्राप्त होती है। कोई सामान्य व्यक्ति नहीं होता बल्कि विशिष्ट मानव होता है। क्योंकि जिस व्यक्ति में विशेष गुण होते हैं प्रभुसत्ता केवल उसी को प्राप्त होती है। ऐसा व्यक्ति अपने विशेष गुणों से ही सत्ता को प्राप्त करता है।
(3)अस्मि और निरंकुश:- प्रभुसत्ताधारी के पास असीमित शक्ति होती है और उस पर किसी अन्य व्यक्ति संगठन या राज्य का नियंत्रण नहीं होता है।
(4)सर्वव्यापी :- ऑस्टिन के अनुसार प्रभुसत्ताधारी राज्य में सभी जगह उपस्थित होता है। राज्य में कोई ऐसा स्थान नहीं  हो सकता जो प्रभूसत्ताधारी के अधीन ना हो।
(5) अविभाज्य:- जॉन ऑस्टिन के अनुसार प्रभुसत्ता का विभाजन नहीं होता और सदा सदैव पूर्ण रूप से एक व्यक्ति को प्राप्त होती है। ऐसा नहीं हो सकता कि एक राज्य में दो प्रभुसत्ताधारी हो यदि ऐसा किया गया तो प्रभुसत्ता नष्ट हो जाएगी।
(6)कानून का स्त्रोत:- कानून का स्रोत जॉन के अनुसार प्रभुसत्ता कानून का स्रोत है। लेकिन वह किसी अन्य स्त्रोत को स्वीकार नहीं करता है। उसके अनुसार कोई भी नियम या परंपरा तब तक कानून नहीं बन सकती जब तक कि उसे प्रभुसत्ता ना मिले इसलिए प्रभुसत्ता का आदेश ही कानून है। (7)आंतरिक और बाहरी नियंत्रण से मुक्त:- प्रभुसत्ता पर न तो आंतरिक नियंत्रण हो सकता है और ना ही बाहरी नियंत्रण होता है। राज्य के अंदर कोई भी व्यक्ति या संगठन प्रभुसत्ता से ऊपर नहीं होता और प्रभुसत्ताधारी अपने ही तरह दूसरे प्रभुसत्त्ताधारी के आदेशों का पालन करने के लिए बाध्य नहीं होगा।
(8)राज्य की अनिवार्य विशेषता:-  प्रभुसतता राज्य की  अनिवार्य विशेषता हैं। प्रभुसत्ता के बिना राज्य का निर्माण संभव नहीं है।
# आलोचना
1.जॉन ऑस्टिन का सिद्धांत केवल निरंकुश पर लागू होता है। क्योंकि लोकतंत्र में सत्ता का स्वरूप ऐसा ही है।
2. जॉन ऑस्टिन के अनुसार प्रभुसत्ता का विभाजन नहीं होता है। लेकिन संघात्मक व्यवस्था में केंद्र और राज्य के बीच प्रभुसत्ता का विभाजन हो जाता है।
3.ऑस्टिन के अनुसार प्रभुसत्ता केवल श्रेष्ठ मानव को ही स्वीकार होती है। लेकिन लोकतंत्र में ऐसा नहीं होता कोई भी व्यक्ति शासक बन सकता है।
4. ऑस्टिन के अनुसार केवल प्रभुसत्ता ही कानून का स्त्रोत है। लेकिन वास्तव में धर्म और परंपराओं भी कानून का स्त्रोत है।
5.ऑस्टिन ने सत्ताधारी को निरंकुश शक्ति माना है लेकिन वास्तव में ऐसा नहीं है। क्योंकि प्रभु सत्ताधारी पर जनता और दबाव समूह नियंत्रण होता है।।

प्रश्न:-2 लोकप्रभुसत्ता और लोकिकप्रभुसत्ता किसे कहते हैं यह किस प्रकार विकसित हुई?

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Chapter-1 (राज्य)
Chapter-2 (प्रभुसत्ता)
Chapter-3 (राजनीति)
Chapter-4  (न्याय)
Chapter-6  (समानता)
Chapter-7 (लोकतंत्र)
Chapter-8. (नागरिकता)

Chapter-9 (अधिकार
            

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